पाकिस्तान में फेक न्यूज और गलत सूचना की समस्या एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। हाल ही में, पाकिस्तान की सरकार ने राष्ट्र के संस्थानों के खिलाफ फैल रही फेक न्यूज से निपटने के लिए 2 अरब रुपये का बजट मंजूर किया है। यह कदम आर्थिक संकट के समय में उठाया गया है, जहां देश गरीबी, बेरोजगारी और रिकॉर्ड-तोड़ महंगाई से जूझ रहा है।

फंड का आवंटन
यह फंड प्रमुखता से इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) को दिया जा रहा है, जो पाकिस्तानी सेना की मीडिया शाखा है। ISPR को इस राशि से तकनीकी अपग्रेड और साइबर सुरक्षा उपायों को मजबूत करने की योजना है, जिससे फेक न्यूज के प्रसार को रोका जा सके। रिपोर्ट के अनुसार, इस बजट में 1.22 अरब रुपये ISPR के तकनीकी अपग्रेड के लिए और 723 मिलियन रुपये साइबर सुरक्षा के लिए आवंटित किए गए हैं। इसके अलावा, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के बजट से 750 मिलियन रुपये इस पहल के लिए डायवर्ट किए गए हैं।
सरकार और जनता की प्रतिक्रिया
इस फैसले के पीछे फेक न्यूज की रोकथाम राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को नुकसान पहुंचा रही है। हालांकि, इस निर्णय ने पाकिस्तान के नागरिकों को और नाराज कर दिया है, जो पहले ही आर्थिक बदहाली से जूझ रहे हैं। जनता का मत है कि इस पैसे का इस्तेमाल जन कल्याण के लिए किया जाना चाहिए, जैसे कि स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा या बुनियादी ढांचे के विकास में।
इस फंड की आलोचना और विरोध
इस निर्णय की आलोचना भी हुई है, क्योंकि ISPR को अतीत में भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने के आरोपों से जोड़ा गया है। कुछ लोगों का मानना है कि इस फंड का इस्तेमाल विपक्षी आवाजों को दबाने और सरकारी प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देने में किया जा सकता है। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए विचारों से पता चलता है कि कई पाकिस्तानी इस फैसले को सरकार की प्राथमिकताओं का गलत उपयोग मानते हैं, खासकर जब देश की आर्थिक स्थिति इतनी नाजुक हो।
फेक न्यूज के खिलाफ लड़ाई में 2 अरब रुपये का आवंटन पाकिस्तान में एक विवादास्पद निर्णय रहा है। जहां एक तरफ इसे राष्ट्रीय हित में उठाया गया कदम माना जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसे सरकार की प्राथमिकताओं का गलत उपयोग बताया जा रहा है। इस मामले में समय ही बताएगा कि यह फंड कितना प्रभावी साबित होता है और क्या यह पाकिस्तान की सूचना की सत्यता को सुधारने में सफल हो पाएगा।
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