भोपाल गैस त्रासदी का कचरा: भोपाल गैस त्रासदी की काली रात को चार दशक बीत चुके हैं, लेकिन उस घटना के घाव अभी भी भोपाल की धरती पर ताजा हैं। 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का रिसाव हुआ था, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली और लाखों को प्रभावित किया। इस घटना के बाद, कारखाने में जमा हुआ जहरीला कचरा एक लंबे समय तक भोपाल के लिए एक बड़ी चुनौती बना रहा। हालांकि, 40 साल बाद, एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है जिससे इस कचरे को अंततः निपटान के लिए स्थानांतरित किया गया।

कचरे का निपटान कैसे किया जायेगा
1 जनवरी 2025 को, भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने से 337 मीट्रिक टन खतरनाक कचरा पीथमपुर, धार जिले के लिए रवाना किया गया। इस कचरे को 12 कंटेनरों में भरकर पीथमपुर की एक औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में ले जाया गया। इस प्रक्रिया के लिए विशेष सुरक्षा उपाय किए गए; 250 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया, जिसमें पुलिस, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस की तैनाती की गई ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके।
कचरा निपटान का विरोध और चुनौतियाँ
हालांकि, इस कचरे को पीथमपुर ले जाने के फैसले का स्थानीय नागरिकों ने जबरदस्त विरोध किया। उनका तर्क था कि इस कचरे को जलाने से उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विरोध के कारण पीथमपुर में कुछ दिनों तक तनावपूर्ण स्थिति बनी रही, जिसमें दो प्रदर्शनकारियों ने आत्मदाह की कोशिश की और कई लोगों ने चक्काजाम किया। इसके बाद, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घोषणा की कि अदालत के नये आदेश तक कचरे को नहीं जलाया जाएगा।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है और सरकार को कचरे के निपटान के लिए एक निश्चित समयसीमा दी है। सरकार ने कचरे को हटाने के लिए विभिन्न सुरक्षा मानकों और वैज्ञानिक निपटान प्रक्रियाओं को लागू करने की बात कही है। उच्च न्यायालय ने 6 जनवरी 2025 तक राज्य सरकार से प्रगति रिपोर्ट तलब की है, जो दर्शाता है कि इस मुद्दे पर सख्त निगरानी रखी जा रही है।
क्या इससे कुछ सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव होंगे
भोपाल गैस त्रासदी के बाद की स्थिति ने न सिर्फ भोपाल बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया था। जहरीला कचरा भोपाल के भूजल को प्रदूषित कर रहा था, जिससे स्थानीय लोगों की सेहत और जीवन पर बुरा असर पड़ रहा था। इस कचरे के निपटान की प्रक्रिया को शुरू करना एक बड़ा कदम है, हालांकि यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि निपटान की प्रक्रिया भी पर्यावरण के अनुकूल और सुरक्षित हो।
भोपाल गैस त्रासदी के जहरीले कचरे को हटाने की प्रक्रिया एक लंबी और जटिल यात्रा है जिसमें कई चुनौतियाँ हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी कार्य नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रक्रिया से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए, सरकार और नागरिकों
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